जब दिवाली की सुबह-सुबह सूप-दौरा पीटती हुई निकलती थीं दादी, नानी, क्या होती है ये 'दरिद्र भगाने' की प्रथा?
यूपी-बिहार में यह चलन आज भी है. दिवाली की सुबह यहां महिलाएं भोर-भोर में सूप-दौरा या बेना (लकड़ा का पंखा) लेकर लोहे की किसी चीज से पीटती हैं और इसे लेकर पूरे घर में पीटती हुई जाती हैं. इसे दलिद्दर खेदना या दरिद्र भगाना कहते हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
बचपन में दिवाली की सुबह-सुबह आंखें खुलती थीं दादी के सूप पीटने की आवाज से. हमारी दादी दिवाली के भोर में ही एक पुराना सूप और लोहे का हंसुआ या ऐसी ही कोई चीज लेकर पूरे घर में सूप पीटतीं थीं और साथ में बोलती थीं- "ईश्वर पइसे, दलिद्दर भागे" यानी कि 'ईश्वर आकर बैठें और दरिद्र भागे'. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर के एक घर में मैंने दिवाली की सुबह यह प्रथा देखी है. यूपी-बिहार में यह चलन आज भी है. दिवाली की सुबह यहां महिलाएं भोर-भोर में सूप-दौरा या बेना (लकड़ा का पंखा) लेकर लोहे की किसी चीज से पीटती हैं और इसे लेकर पूरे घर में पीटती हुई जाती हैं. स्थानीय भाषा में इसे दलिद्दर खेदना यानी कि दरिद्र भगाना कहते हैं.
क्यों मनाई जाती है ये रस्म
दिवाली मां लक्ष्मी का त्योहार है. इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है. ऐसे में इस त्योहार के लिए लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, रंग-रोगन करते हैं और सजावट करते हैं, ताकि मां लक्ष्मी हमारे घर में वास करें. ऐसे में जहां लक्ष्मी का वास होगा, वहां, से पहले दरिद्रता यानी गरीबी को भगाया जाना जरूरी है, ऐसा माना जाता है. कई जगहों पर दरिद्रता भगाने की ये रस्म दिवाली के एक दिन बाद होती है.
कैसे पूरी की जाती है ये प्रथा?
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अगर आपके घर भी यह प्रथा होती है, तो आप अपने दादी, नानी से पूछ सकते हैं कि वो इसे कैसे मनाती हैं. मेरी दादी बताती हैं कि मोहल्ले की औरतें पहले अपने-अपने घर के कोनों-कोनों में जाकर सूप पीटती हैं और दरिद्र को भगाने और ईश्वर के आने का आह्वान करती हैं. उनके साथ एक जलता हुआ दीपक भी होता है. फिर इस सूप, लोहे के हंसुआ या ऐसी ही कोई चीज और वो दीपक लेकर घर से दूर किसी जगह पर जाती हैं. वहां सूप पर दीपक रखती हैं और हाथ जोड़कर प्रणाम करती हैं. लोहे की जो चीज साथ में होती है, उसे उस दीपक की आंच में सेंक लेती हैं.
महिलाएं वहां रुककर मंगल-गीत गाती हैं औपर फिर घर लौटती हैं और साथ में जो लोहे की चीज होती है, उसे धोकर वापस रख लेती हैं. इसके बाद स्नान करके खुद को और घर को साफ-सुथरा किया जाता है, ताकि शाम की विधिवत पूजा के बाद मां लक्ष्मी का स्वागत किया जा सके.
इस परंपरा के पीछे क्या तर्क या विज्ञान है, यह तो नहीं पता लेकिन यह सदियों पुरानी परंपरा है, और लोग आज भी इनको मानते आ रहे हैं. लेकिन सच कहा जाए तो हमारी जिंदगी में ये इतने गहरे तक जुड़े हुए हैं, कि हमारे त्योहार इनके बिना अधूरे से हैं. आपके घर पर क्या दिवाली पर यह परंपरा पूरी की जाती है? या फिर कोई और कहानी-प्रथा, चलन है जिसे आप भी याद करते हैं? हमें नीचे कॉमेंट सेक्शन में जरूर बताएं.
06:58 PM IST